महिलाओं में बढ़ती समस्याएं

महिलाओं में बढ़ती समस्याएं

  • Dr. Rajeev Ranjan
  • 8/28/2023
  • 01 Min read
  • Health

इस आधुनिक जीवन की जो भाग- दौड़ है उसे भाग दौड़ के कारण आजकल महिलाओं में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का परिणाम देखा जा रहा इन संदर्भ में आपको इस विषय को जरूर एक बार देखना चाहिए
महिलाओं में , गर्भाशय से जुडी़ समस्याएं तेजी से बढ़ रही है । किसी को अनियमित मासिक धर्म तो किसी को अत्यधिक रक्तस्राव हो रहा है । कुछ महिलाओं को, गर्भाशय का फाइब्रॉएड ( रसौली ) से जूझ रही है । इन सभी का आयुर्वेद से उपचार संभव है । जबकि , इन रोगों की अनदेखी करने से, बांझपन जैसे गंभीर परिणाम भूगतने पड़ते है ।

’ आयुर्वेद का संबंध, हमारी संस्कृति व जीवन से है , इसे अपनाएं स्वस्थ जीवन पाएं।

डॉ राजीव रंजन

गर्भाशय फाइब्रॉएड, गर्भाशय की दीवारों पर पनपने वाला एक प्रकार का ट्यूमर होता है। फाइब्रॉएड एक या एक से ज्यादा ट्यूमर के -तौर पर विकसित होता है। गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) के कारण –फाइब्रॉएड होने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन, वैज्ञानिक तौर पर किसी एक कारण की , निश्चित तौर पर पुष्टि नहीं की गई है। इनमें से प्रमुख कारण

(1) आयु
फाइब्रॉएड, प्रजनन काल के समय विकसित होते हैं। विशेषकर, 30 की आयु से लेकर, 40 की आयु के बीच या फिर रजनोवृत्ति शुरू होने तक, इसके होने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। माना जाता है कि , रजनोवृत्ति शुरू होने के बाद ये कम होने लगते हैं।
(2) मोटापा
अगर किसी महिला का वजन अधिक है, तो उसमें फाइब्रॉएड होने की आशंका , अन्य महिलाओं के मुकाबले तीन गुना तक ज्यादा होती है।
* असंतुलित भोजन
अगर आप रेड मीट या फिर जंक फूड ज्यादा खाती हैं और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन कम करती हैं, तो आप इस रोग की चपेट में आ सकती हैं।
* हार्मोंस
शरीर में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हार्मोंस की मात्रा अधिक होने पर भी , गर्भाशय फाइब्रॉएड हो सकता है।
* आनुवंशिक
अगर परिवार में , किसी महिला को यह समस्या रही है, तो आशंका है कि, आगे की पीढ़ी में से, किसी अन्य को भी, इसका सामना करना पड़ सकता है।
गर्भाशय फाइब्रॉएड के लक्षण

फाइब्रॉएड से ग्रस्त, कुछ महिलाओं में, इस तरह के परिवर्तन दिखाई दे सकते हैं।

  • अत्यधिक रक्तस्राव और मासिक धर्म के समय अहसनीय दर्द होना।
  • एनीमिया यानी शरीर में , लाल रक्त कोशिकाओं की कमी आना।
  • पेट के निचले भाग यानी पेल्विक एरिया में भारीपन महसूस होना।
  • पेट के निचले हिस्से का फूलना।
  • बार-बार पेशाब आने का अहसास होना।
  • यौन संबंध बनाते समय दर्द होना।
  • कमर के निचले हिस्से में दर्द होना।
  • प्रजनन क्षमता में कमी यानी बांझपन, बार-बार गर्भपात होना, गर्भावस्था के दौरान सी-सेक्शन का खतरा छह गुना तक बढ़ना।
    प्राकर्तिक चिकित्सा
    कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये, जो फाइब्रॉयड के आकार को सिकोड़ दे। इन आहारों के नियमित सेवन से, लीवर अत्‍यधिक इस्‍ट्रोजेन को शरीर से बाहर निकालेगा । जिससे हार्मोन बैलेंस होगा और फाइब्रॉयड समाप्‍त होगा।
    * लहसुन
    लहसुन में, एंटीऑक्‍सीडेंट होते हैं जो कि , ट्यूमर को बढ़ने से रोकते हैं।
    * गुग्‍गुल
    गर्भाशय से जुड़ें रोगों के लिए गुग्‍गुल का सेवन बहुत फायदेमंद होता है।
    * अदरक
    अदरक की जड़ गर्भाशय में रक्‍त के प्रवाह और परिसंचरण को बढ़ावा देने में, प्रयोग किया जाता है। बढा़ हुआ सर्कुलेशन गर्भाशय, अंडाशय या फैलोपियन ट्यूब की सूजन को, कम करने में सहायता करता है ।
    * प्‍याज
    प्‍याज में सेलेनियम होता है । जो कि, मासपेशियों को राहत प्रदान करता है। इसका तेज एंटी–इंफ्लमेट्री गुण फाइब्रॉयड के आकार को सिकोड़ देता है।
    * हल्‍दी
    हल्‍दी सूजन को कम करती है।
    * दालें और बींस
    राजमा, बींस, मटर आदि खाने से, शरीर को एक तरह का कैमिकल, जिसे फोटोइस्‍ट्रोजेन कहते हैं, मिलता है। यह फाइब्रॉयड को सिकोड़ता है।
    * सिट्रस फल
    सिट्रस फलों में ( नींबू, संतरा, मौसमी, चकोतरा ), विटामिन सी और एंटीऑक्‍सीडेंट होता है। यह शरीर को अंदर से स्वच्छ करता है और यूट्रस में फाइब्रॉयड को बनने से रोकता है।
    * बादाम
    इसमें ओमेगा ३ फैटी एसिड होता है। जो कि, यूटेरस की लाइनिंग ठीक करता है , जिससे फ़िब्रोइड के होने की सम्भावना काम रहती है।
    * सेब का सिरका
    इसके सेवन से , शरीर में जमा हो चुके , विषैले पदमददसहथ बाहर निकल जाते हैं। साथ ही, वजन कम करने में सहायता मिलती है
    * आंवला
    आंवले में , एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं।
    * ग्रीन टी
    ग्रीन टी में, एपिगलोकेटेशिन गलेट नामक पॉलिफेनोल एजेंट पाया जाता है। जो फाइब्रॉएड पर कारगर तरीके से काम करता है। मुख्य रूप से , पॉलिफेनोल हरी पत्तेदार सब्जियों और फलों में पाया जाता है।
    * साल्मन मछली
    साल्मन मछली को , ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन–डी का, अच्छा स्रोत माना गया है। साल्मन मछली में, फिश ऑयल भी होता है। जिसकी सहायता से शरीर में , प्रोस्टाग्लैंडीन ई3 (PGE3) का निर्माण होता है। यह यौगिक एंटीइंफ्लेमेटरी की तरह काम करता है, जो फाइब्रॉएड से होने वाले दर्द को कम करने में सक्षम है। साथ ही साल्मन मछली, शरीर में एस्ट्रोजन के स्तर को नियंत्रित करती है
    * ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी पीना चाहिए ।
    इन सभी रोगों में , आयुर्वेद उपचार पद्धति के प्रयोग अत्यंत सफल होते Shree Chhittkamal heath care Dr Rajeev Ranjan MD( UK) professor 8178782337